sustainable agriculture technics
शाश्वत खेती का तंत्र और मंत्र
शाश्वत विकास और शाश्वत कृषी के बारे में आज जानेंगे. शाश्वत ये क्या संकल्पना क्या है. उसका निसर्ग के साथ क्या रिश्ता है, उससे क्या प्रभाव पडता है. आजकी आधूनिक दौर में क्या महत्व है, उसके लोकल और ग्लोबल क्या परिणाम होते है. उसके अलग अलग क्या पैलू है इसके बारे में जानेंगे.

शाश्वत विकास निती का और शाश्वत कृषी का आपसी संबध है, जो परस्परपुरक है. और विश्व कल्याण के लिए लाभदायी है.
संकल्पना:
शाश्वसता क्या है ? ये पहेले जानेगें. Sustainable को हिदीं में शाश्वत कहेते है. और भी आसान भाषा में कहें तो निरंतरता. एक दुसरे पर निर्भय रहना और इनमें मानवी हस्तक्षेप को कम करते जाना. शाश्वतता यह एक प्रक्रिया है जो निसर्ग में पहेलेसे मौजूद है, हमेशा होती है. लेकीन अमानविय कृत्योंसे उसको हमने खंडीत कर दिया है. जैसे की बहते पाणी को रोखना और बडे बडे डॅम का निर्माण करना, ( हालाकी इसकी अलग अलग जरूरते है लेकीन क्या पानी को जमीन में संग्रहीत करने के बजाय जमीन के उपर संग्रहीत करना निसर्ग के चक्र में कितना उचीत है) ऐसे बहोत सारे उदाहरण है जैसा सोलर उर्जा को छोडकर युनरेनियम के लिए खदान खोदी जाती है. पेडों से थंडी हवा मिलती है जो हम एसी से लेना पसंद करते है. निसर्ग में उपलब्ध संसाधनो को छोडकर सिंमेट के जगंलो का निर्माण करना. निसर्ग या प्रकृती खुद बडे स्तर पर फार्मिंग करती है. उसको समझने के बजाय हम रासायनिक खाद- उर्वरक का इस्तेमाल करके जमीन की सेहत को बिघाड रहे है. ये सारी अमानविय कृत्यों से निसर्ग की अनादीकालों से चलता आ रहा चक्र को हम खंडीत कर रहे है. और उसके परिणाम क्या है यह भी समझ लेने का कष्ट नही करते. तो श्वाश्वतता जरूरी है. शाश्वतासेही सर्क्यूलर इकोनॉमी में बडा योगदान देती है दे सकती है इसे समझना जरूरी है.

व्याप्ती:
आजके इस विचार में हम कृषी के संदर्भ में क्या व्याप्ती है इसको हम समझगें. शाश्वतता और कृषी का एक अनन्यसाधारण संयोग है. आज की विकास निती में, दुनिया को पेट भरने और पोषण के लिए सबसे बडा योगदान कृषी का है. वो चाहे विकसीत देश हो या विकसनशील देश हो. प्रकृती जंगलो के रूप में खूद बडी खेती करते आ रहा है. ( लेकीन मानव ने उद्योग के लिए उसको नष्ट कर दिया) प्रकृती घास से लेकर बडे बडे वृक्षों को उगाता है, बढाता है. उसकी एक निरतंर पाणी, खाद की व्यवस्था करता है. इससे वसुंधरा के तापमान, तापमान, बारिश का चक्र में बडा योगदान है) प्रकृती के जंगलो के खेती के बाद जो बडा योगदान है मानव के व्दारा हो रही खेती. लेकीन इसमें बडी गडबडी है. बार बार खेती के तंत्रो में बदलाव करके खर्चे को तो बढाता है लेकीन उसीके साथ प्रकृती में स्थित एक चक्रको भी खंडीत करता है. और इसके परिणाम स्वरूप मिट्टी का बंजर होना, पाणी की अधिक मात्रा में उपयोग से, रासायनिक खाद एवंम औषधीयों के उपयोग से पूरी जैवविविधता को भी खंडीत कर रहा है. तो हमें प्रकृती के खेती की रचना को समझना पडेगा और मानवव्दारा हो रही खेती में बदलाव करना पडेगा.

महत्व:
शाश्वत खेती में बहोत सारे प्रकृती से साथ साथ, हाथ मिलाकर हम आगे जा सकते है जैसी की कीडों का नियंत्रण, खाद का नियंत्रण, पाणी का नियंत्रण करके कृषी उपज को अधिक उंचाई पर पहुंचा सकते है. क्यों की आजकी रासायनिक खेती ये खर्चिक याने के उत्पादन खर्चों को बढाती है. उत्पादन घटता जाता है. खेती के बाद आय का बडा श्त्रोत है कृषी से संबधीत उदयोग, जैसे की कपडा उदयोग ( आज पेट्रोकेमिक्लस कपडा आ गया है लेकीन वो शरिर के लिए घातक है) मानव के औषध निर्माण, सेल्फ फूड (खाद्य उदयोग, जैसे ब्रेड, बिस्किट इ.) अगर खेतीमें खर्चों की लागत बढती गयी ( यांत्रिक खेती भी एक खर्चिक विकल्प है जो सबके बस में नही है. अगर यंत्रो से खेती करने से फायदें की सोचेंगे तो इसका निजीकरण करना पडेगा. और खेती के निजिकरण से छोटे छोटे किसान, उसके कुटुंब, उसके निर्भय गावं की रचना उध्वस्त हो जाएंगें और लोग गरिबी की खाई में डुब जाएंगे)

स्थानिक महत्व:
आज भारत और दुनिया भरके विकसनशिल देश में भूखमरी से लोग लढ रहे है, आधी दुनिया आधा पेट या एक वक्त का खाना खा रहे है. अगर हमने खेती को फायदेमंद नही किया तो मंहेगाई बढते जाएंगी, भूख और मंहगाई से लोग हिंसक बन जाते है. इससे प्रश्नो की गहराई बढ जाती है जो हम अफगाण और पाकिस्तान में देख रहे है. तो लोगों को कृषी और कृषी संबधीत रोजगार में हमे लगाना पडेगा. लोग भले खून पसीना का पाणी करके शांती से जिना चाहते नाकी खून बहाके जिना चाहते है. तो खेती को हमे श्वाश्वत तरिके से करना पडेगा.

वैश्विक महत्व:
लोकल मुद्दो को हमने नजर अंदाज कर दिया तो विश्व में दो देशों में हिसां, युध्द और आंतकवाद को बढावा मिलता है. हे हम देख रहे है. और विश्व अलगवाद के रूप में बहर के आता है जो की विश्व सहयोग, प्रेम और शांती से बढना चाहिए.
पर्यावरणीय महत्व: प्राकृतिक तरिकेसे खेती करने से सिर्फ उत्पादनही बल्की पर्यावरण के चक्रों में सुधार आता है. और पर्यावरण कोई इमली नही है जो चख के खाने की चिझ है. ये भी एक जटील, कल्पना के परे संरचना है जिसपर धरती के वातावरण, जिव जंतूओं का जिवन अवलंबून है, और इन्ही पर मानव का आर्युमान, स्वास्थ और जिवन भी अवलंबून है.

जैविविधतता को बचाएं:
प्रकृती खुद हजारोंसालो से खेती कर रहा है. मानव के कल्पना के परे उसने विविध वनस्पती, उसके उपयोगी जिव जंतूओ को जिवित रखा है, हमने विकास की ओढ में उसको खतम करते जा रहे है. हमें शाश्वत कृषी करके इसमे जरूर योगदान दे सकते है.
मिट्टी की उपज को बढायें:
रायानिक खांद एवंम औषधी के उपयोग से मिट्टी की उपजता दिनों दिन कम होती जा रही है. बंजर होती जा रही है. क्यों की ऐसी मिट्टी में कौनसेभी उपयोगी जिव जिंदा नही रहते. उनको गैरमौजूदगी में मिट्टी निर्जिव बनती जा रही है. अगर हम शाश्वतरूप से खेती की तंत्रो को समझेगे उसे अपनाएंगे तो जरूर मिट्टी की उपजकता बढती जाती है उससे उत्पादन भी बढते जाता है.
इस कृती अपनाएं:
हमें खेती को शाश्वत तरिके से करना है तो प्रकृती को समझना पडेगा, प्रकृती के नियमों को शरण जाना पडेगा. उसमें रासायनिक खाद और औषधोंका उपयोग को बंद करना पडेगा, प्रकृती के अनुसार हमे मौसमअनुसार कृषी उत्पादन लेने पडेगें. जैवविविधतता को बढानां पडेगा. ये एक जटील प्रक्रिया है लेकीन समझ कर करेंगे तो आसान है.

आएं संकल्प करे:
आज से हम संकल्प करे की हम रासायनिक तरिके से उगाएं कृषी उत्पाद को नही खरिदेंगे, प्राकृतिक तरिकेसे हम खाना उगाएंगे, उसीको महत्व देगें. आएं हम कुछ प्रकृती को दे जाएंगे, घर पर उपलब्ध जगहं में अपनी सब्जियां उगाएंगे, उगाने का प्रयास करेंगे.
इस लेख में प्रदर्शित किए संकल्पना को गहराई से समझने के लिए हमारे ऑनलाईन गार्डेनिंग कोर्स को आजही जॉईन करे.
संदीप चव्हाण, गच्चीवरची बाग, ( अर्बन फार्मिंग कन्स्लटंट एवंम कोच)