नमस्ते, मैं संदीप चव्हाण,
नाशिक महाराष्ट्र से हूँ। मुझे फुल, फल, औषधी और सब्जियों बागवानी करना बहुत है। यह मेरा व्यवसाय ही नहीं है; यह मेरी लगन है। मैं 2001 से इसे विषय को भावुकतापूर्वक कर रहा हूँ। मैं प्रकृती के विज्ञान, संरचना में मजबूती से विश्वास रखता हूँ और प्रकृती की देखभाल करना ये मेरा सर्वश्रेष्ट जिम्मेदारी मानता भी हूं और निभाता भी हूं. धरती मेरी माँ की तरह है। मेरे लिए मिट्टी एक पोषण की तरह है, ठीक वैसे ही जैसे एक बच्चे के लिए माँ का दूध षोषण देता है। अपने बगीचे की पोषण करने और उसे बढ़ते देखने में मुझे बहुत आनंद मिलता है। बागवानी मेरा जिवन का लक्ष्य है और यह मेरी आत्मा को पूर्ण समाधान कराती है। – संदीप चव्हाण
(शहरी कृषि सलाहकार और प्रशिक्षक)
कहाणी शुरू होती है.. 2001 से, तब में युवावस्था में था. में और मेरा परिवार मेरे बचपन में ही नाशिक में आएं थे…
मेरे पिताजी और मॉं कंपनी में जाते थे.. में उनके कष्टों को बारिकी से देखता था. उनमें एक विचित्र उलझन थी,,, परेशानी थी, शायद गांव में अपनों को छोडके आएं थे… और यहा बढते शहर में वैसा कोई अपना नही था. तेल से लेके नमक तक सारी चिंजे खरीदकर लाते थे. गांव जैसा कोई व्यवहार नही था.. मैं हमेशा उनके पैसे के तंगी को लेकर विचार करता था.. की क्यूं ऐसी जिंदगी जिना पडती है.. इसकी वजह क्या है.. कमाएं हुआ खाना भी अच्छा नही लगता या सुख शांती से क्यूं नही रह सकते..
जैसे जैस मैं युवावस्था में पहुचता गया.. वैसे वैसे मेरे विचारों का दायरां बढता गया. क्या हमरी जैसी स्थिती है वो सिर्फ हमारी है या और लोगो की भी है.. या इसको बस वो क्यक्ति ही जिम्मेदार है या सरकार, या आजकी व्यवस्था..
बहोत सारे विचार करने बात पता चला.. जैसा खान पान, रहन वैसा व्यवहार है.. मेरा लगाव गांव की व्यवस्था की तरफ बढने लगा. खेती करना, गाय बैलो के साथ रहना और एक सृजनशील जिना चाहता था.. शहर में एक अलगसी रेटरेस में लोग फंसे है.. घर चाहिएं. गाडी चाहिएं बंगला चाहिए. ये नही तो.. कुछ नही.. इन सारे चिंजो में और गहरा चलता गया.. प्रकृती तरफ मेंरा ध्यान आकर्षित होने लगा..( To Be Continue…)
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