एक ऐसी कहानी है जो चुप्पी साधे बैठे रहने की बजाय आपसी संवाद की महत्वपूर्णता को दर्शाती है

एक बार की बात है, एक छोटे से गांव में दो सख्त दोस्त रहते थे, मनोज और रमेश। वे दोनों बड़े ही चुप्पी साधे स्वभाव के थे और अपनी राय या विचारों को बयान नहीं करते थे। बस केवल दर्शक बने रहेते थे. एक दिन, गांव में एक नई स्कूल खुली और उसके साथ ही एक नयी शिक्षिका भी आई। नए स्कूल में पहले दिन जब शिक्षिका ने अपने विद्यार्थियों से पूछा कि वे अपने सपनों और उद्देश्यों के बारे में क्या सोचते हैं, तो सभी बच्चे अपनी बातें बताने लगे, परंतु मनोज और रमेश चुप रहे। शिक्षिका ने दोनों के पास जाकर पूछा, “क्या तुम दोनों मुझे नहीं बताना चाहोगे?” मनोज और रमेश ने हलकी मुस्कराहट दिखाई और रमेश ने कहा, “हम आपसे बात करना पसंद नहीं करते हैं, हमें लगता है कि हमारे विचारों का कोई महत्व नहीं है।”

शिक्षिका ने दोनों से धीरे से बात की और उन्हें समझाया कि हर व्यक्ति का विचार महत्वपूर्ण होता है और उनके विचार बिना प्रतिक्रिया के रहने से अनदेखे ही रह जाते हैं। उन्होंने दोनों को यह सिखाया कि सही समय पर सही तरीके से बात करना बहुत महत्वपूर्ण है और आपसी संवाद क्षमताही उन्हें उनके लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद कर सकती है। मनोज और रमेश ने इस बात को समझा और उन्होंने शिक्षिका के साथ सही समय पर सही तरीके से संवाद किया। वे दोनों ने जाना कि उनके विचारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है और उन्हें बाकी लोगों के साथ मिलकर काम करने में सहायता कर सकते हैं।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि चुप्पीसाधे बैठे रहने से हम अपने विचारों को बिना किसी को बताए खो देते हैं, और आपसी संवाद से हम अपने विचारों को बेहतरीन तरीके से साझा करके उन्हें महत्वपूर्ण बना सकते हैं। – संदीप चव्हाण, गच्चीवरची बाग, (ऑरगॅनिक गार्डेनिंग कन्स्लटंट एवंम कोच)